पवन


मैं पहाड़ देखी,  
देखी मैं नदी।  
देखी ख़ुशी आँखों में,  
रोते देखे बिन—आँसू बंद आँखों में।  
कहीं घर में मिट्टी ना,  
कहीं घर-बार सब मिट्टी का।  
मैं उन्हे देखिया, जिन-सा ना कोई,  
मैं वो दिखिया, फिर उनका बने ना कोई।  
मैं दिखिया सब,  
मुझे देखिया कोई ? 

— राजिश्यो


                                                                                       


अर्थात


यह कविता हवा की दृष्टि से लिखी गई है —
एक ऐसी उपस्थिति जो हमेशा हमारे आस-पास होती है,
जो सबको देखती है, महसूस करती है,
लेकिन कभी खुद दिखाई नहीं देती।

यह हवा की तरह एक कलाकार के अनुभव को दर्शाती है —
जो दूसरों की भावनाओं का साक्षी बनता है,
सबका दुःख-सुख समझता है,
पर खुद कभी किसी की नज़रों में नहीं आता।

यह कविता तन्हाई, अस्तित्व की अनदेखी,
और दृष्टा होने के भाव को बड़ी संवेदनशीलता से दर्शाती है।





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