मैं पहाड़ देखी, देखी मैं नदी। देखी ख़ुशी आँखों में, रोते देखे बिन—आँसू बंद आँखों में। कहीं घर में मिट्टी ना, कहीं घर-बार सब मिट्टी का। मैं उन्हे देखिया, जिन-सा ना कोई, मैं वो दिखिया, फिर उनका बने ना कोई। मैं दिखिया सब, मुझे देखिया कोई ? — राजिश्यो अर्थात यह कविता हवा की दृष्टि से लिखी गई है — एक ऐसी उपस्थिति जो हमेशा हमारे आस-पास होती है, जो सबको देखती है, महसूस करती है, लेकिन कभी खुद दिखाई नहीं देती। यह हवा की तरह एक कलाकार के अनुभव को दर्शाती है — जो दूसरों की भावनाओं का साक्षी बनता है, सबका दुःख-सुख समझता है, पर खुद कभी किसी की नज़रों में नहीं आता। यह कविता तन्हाई, अस्त...
"Ekla Chalo Re — a path born from the pen of Rabindranath Tagore, that finds its way even through the closed lanes of Jaipur. Where no one walks beside you, you still learn to move forward."
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